रविवार, 21 अप्रैल 2013

हाईकू

टूटगे आज
मरजादा के डोरी
लाज के होरी ।

पईसा सार
नता-गोता ह घलो
होगे बेपार ।


मन म मया
सिरावत हे, पैसा
हमावत हे ।


बढती देख
ऑंखी पँडरियागे
मया उडा गे ।

करथे तेन
मरथे, कोढियेच
मन फरथे ।

पैसा के खेल
ईमानदार मन
पेल-ढपेल ।

परबुधिया
बनके झन ठगा
ठेंगवा चटा ।

परगे पेट
म फोरा, मुसुवा ह
निकालै कोरा ।

पेट के सेती
शहर जाथे, उहें
पेट कटाथे ।

मया के गीत
मन गुदगुदाथे
फागुन आथे ।

नरेन्‍द्र वर्मा
सुभाष वार्ड, भाटापारा
09425518050

बम-निकलगे दम

बम  ! जइसने बम के गोठ निकलिस रेल ह थरथरागे अउ वोकर पोटा कांपे ल धर लिस। वोला बम फूटे ले छर्री-दर्री होके छरियाय रेल अउ मनखे मन के सुरता आगे। मनखे मन के जी घलो धुकुर-पुकुर करे लगीस। 10 बज के 51 मिनट म जइसने रइपुर जवइया कोरबा-रइपुर लोकल टरेन ह हथबंद रेलवे टेसन के पलेटफारम नम्बर एक म रूकिस यात्री मन 5 नंबर के बोगी ले बतकिरी कस भरभरउहन निकले ल धरलिन। जंगल म लगे आगी कस बम के गोठ ह टेसन म बगरगे। डरपोकना मन टरेन ले उतरके दूरिहा होगे। फेर अब्बड़ मनखे वो बोगी के तीर म आके खड़े होगे। कभू बाप-पुरखा म बम नई देखे रहिन, देख लेतेन कहिके कइ झन आधा डर, आध बल करके खड़े रहिन। हिम्मत करके कई झन डब्बा म चढ़गे। वो मनखेच का जेन डर्रा जावय। मनखे आज अतका आगू बाढ़े हे येमा वोकर हिम्मत अउ बुध्दि के बड़ हाथ हे। कई झन अटेची ल दूरिहा ले देखिन अउ कइयो झन तो वोला उठा के, हला-डोला के घलो देख डारिन। वोमन आपस में गोठियाय लगीन, ‘टाइम बम तो नोहय वोमा ले टिक-टिक अवाज आथे, येमा ले कांही अवाज नइ आवत हे। ये दूसर किसम के बम होही। जेन अटेची खोले म फूटत होही।’
25 जुलाई 2008 दहला बेंगलूर 9 धमाके, सीरियल ब्लास्ट में 2 की मौत 12 घायल।
— 26 जुलाई 2008 अहमदाबाद में एक के बाद एक 17 धमाके अहमदाबाद थर्राया, साइकल पर रखे गए थे टिफिन बम। सिलसिलेवार हुए सीरियल ब्लास्ट से थर्रा उठा अहमदाबाद शहर भी, 18 की मौत 100 घायल धमाकों के बाद अफरा-तफरी। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और भिलाई जैसे शहर में नक्सली दहशत। हिंसा सिरिफ छत्तीसगढ़ भर म नहीं, जम्मो भारत अउ दुनिया म चलत हे। समाचार मन अइसने खभर ले भरे परे रहिस। आन ल दु:ख देके भला मनखे कभू सुखी रहि सकथे?
— 27 तारीख दिन इतवार जुलाई महीना सन् 2008 के गोठ आय। रइपुर जवइया कोरबा-रइपुर लोकल टरेन ह भाटापारा टेसन म देरी ले आइस। काबर नइ आतिस, भारतीय टरेन नोहय ग। भाटापारा पलेटफारम म जतका सवारी उतरिन वोकर ले जादा वोमा खुसरगे। कइसे खुसरिन येला तो खुसरइयेच मन जान सकथें। जतका बइठे रहिन वोकर ले जादा खडे रहिन। बइठे रहिन तिंकर भाग ल सबो संहरावत रहिन, कोनो जनम के पुन परताप रहिस होही जेन टरेन म बइठे बर जघा मिलगे। रेलगाडी ह रेंगिस तहान सवारी मन ल थोकिन कल परिस। गरमी के मारे हक्क खा गे रहिन। बरसात के समे रहिस तभो ले पानी बरसात के पता नइ रहिस। कोनो कहय के भगवान रिसा गे हे, कोनो काहय के सब मनखे के करमदंड आय। 5 नवम्बर के डब्बा म एक झन कहिस- ‘ये काकर अटेची ये अतेक बड़ ल बीच में मढ़ा दे हे, बइठत नइ बनत हे।’
— दूसर ह कहिस- ‘सिरतोन गोठ ताय येला उप्पर म मढ़ा देतिस नइते सीट के नीचे राख देतिस।’ फेर कोनो कांही जुवाब नइ दीन। मनखे के साध घलो थोक-थोक म बदलत रहिथे। टेसन म खड़े यातरी मन बिनती करत रहिन रेलगाड़ी हब ले आ जातिस अउ बने फसकिरा के बइठे बर जघा मिल जातिस भगवान। जइसने मनखे के एक साध पूरा होथे दूसर आगू म आ के ठाढ़ हो जाथे, येकर कोनो सीमा नइये। अउ मिल जातिस अउ पा लेतेंव- इही सोच ह मनखे ल भटकाथे अउ दु:ख देथे। येकरे सेती कहे गे हे ‘संतोषी सदा सुखी।’
— काकर अटेची ये पूछे म कोनो नइ बताइन त वोमन गुनिन भइगे जेकर ये तेन पानी-किसाब गे होही। थोकिन म पूछ लेबो तब तक आ जाही। खिड़की तीर म बइठे एक झन कहिस- ‘में ह कोरबा ले आवत हौं फेर ये अटेची वाला ल नइ देखे अंव।’ अतका ल सुनिन तहान ले सबके मति छरियागे, चेत-बुध हरागे, उंकर मन म आनी-बानी के संखा होय लगीस। जतके मुंह वोतके गोठ। एक झन कहिस- ‘येला कोनो जान सुन के राखे हे मतलब खतरा।’ दूसर ह पूछिस- ‘का खतरा जी?’ पहलइया ह कहिस- ‘कुछु भी हो सकथे।’ दूसर ह कहिस- ‘का कुछु सोजबाय कह ना गोठ ल भंवा-भंवा के काहत हस।’ पहलइया कहिस- ‘लहास नइते बम।’ बम के नाव सुनिन त कइ झन के डिमाक भक्क ले उड़ागे। आनी-बानी के गोठ उसरे रहिस सबके बया भुलागे। एक झन कहिस- ‘सही बात ये यार, कोनो अइसने छोड़ के थोरे रेंग दिही। कुछु न कुछु गड़बड़ तो हे।’ गाड़ी ह जइसने टेसन म रूकिस, ये गोठ टेसन अउ रेलगाड़ी भर बगरगे। जेन ल अपन जीव के डर रहिस तेन मन तुरत-फुरत गाड़ी ले उतर के दूरिहागे। बोगी नम्बर 5 खाली होगे। जीव के डर सबला रहिथे कोनो ल कमती कोनो ल जादा। फेर हिम्मत बड़े चीज आय।
— अब्बड़ झन हिम्मत करके बोगी म चढ़के अटेची ल देखे लगीन। कोनो तीर ले कोनो दूरिहा ले। कइयोझन अइसनो रहिन जेन मन बल तो नई करत रहिन फेर अटेची देख के लहुटइया मन सो चेंध-चेंध के, तिखार-तिखार के पूछ के सब बात के पता करत रहिन। आगू जाना जरूरी हे तेन मन कोनो आगू अउ कोनो पाछू के डब्बा म जाके बइठे बर धर लीन। पाछू के बोगी म जाके बइठ गे राहय उनला तो इहू होस नहीं रहिस के कहूं 5 नम्बर के बोगी म बम ह फट जाही त पाछू के बोगी मन तो खपलाबे करहीं। काला समझाबे, अइसे लागथे भगवान ह आजकाल कमती डिमाकवाला मनखेच बनाना बंद कर देहे।
— एक झन सियनहिन अपन बेटी अउ नाती टूरा ल लेके 6 नम्बर के डब्बा म चढ़िस। सियनहिन एक जघा बइठ के चैन के सांस लेत कहिस- ‘परान बांचिस ददा रोगहा मन बइठे रहेन तिंहा बम रख दे हें।’ एक झन सवारी ह पूछिस- ‘कहां बम रख दे हावय दाई?’ सियनहिन दाई- ‘येकर पहिली वाले डब्बा म कोनो परलोखिया अटेची म बम डार के मढ़ा देहे।’ दूसर सवारी- ‘बम राख देहे त तैं ह ये डब्बा म काबर चढ़े दाई?’ सियनहिन- ‘जान बचाना रहिस ते पायके बइठ गेन। कांही गलती होगे का बाबू?’ दूसर सवारी- ‘जबड़-बड़ गलती होगे दाई। कहूं 5 नम्बर के डब्बा म बम फूट जाही त इहू डब्बा नई बाचय। कइसनहा अटेची रहीस?’ सियनहिन दाई- ‘अपन आगू म रखाय अटेची ल देखा के अतके बड़ बिलकुल अइसनहेच रहीस।’ ये हर काखर अटेची ये कहि के कइयो घांव पूछे म कोनो जुआब नइ मिलिस। दू चार झन मन जोर-जोर से हुत कराइन फेर कोनो कांहीं नई बोलिस त वोमेर बंइठे रहिन तिंकर जी सुखागे। वोमन ला भुसभुस गिस इहू मा बम थोरे रखाय हे? सियनहिन दाई कहिस- ‘चल बेटी अब ये डब्बा ले उतर के आन डब्बा म जाबोन हमला परान नइ गंवाना हे।’ अइसे कहिके वोमन तीनों झन हब ले उतरगे। उंकरे संगे-संग अउ बहुत झन उतरगें। एक झन लइका अपन दाई सो गोहनावत रहय- ‘दाई, बम देखबो।’ महतारी- ‘वोला का देखबे बेटा चल इहां ले, फूट फाट जाही त जंउहर हो जाही।’ लइका-’नहीं देखबोन कतका बड़ हे? बने बड़ेकजन होही ना दाई? लेगे के लइक होही त हमर वोला घर लेगबो। देवारी तिहार आही न उही म फोरबो।सारा मोटू ह बड़हर हे त बड़े-बड़े दनाका-बम फोरके हमन ला बिजराथे। वोला फोर के देखाहूं देख बेटा बम काला कहिथे।’ वो लइका बिचारा ह का जानय आतंकवादी मन कइसना बम फोरथे तेन ला। वो मन हा खुद तो फूटथे फेर संगे-संग फोरथे दाई के सपना, ददा के गरब, बाई के चूरी अउ लइकामन के भविस ला। लइका- ‘दाई हम बम ल देखबो।’ महतारी- ‘झन देख रे बेटा अइसना चीज ह देखे बर झन मिलय तेने बने हे।’ लइका- ‘नहीं ग हम देखबोन।’ अइसे काहत अटेची के बटन ल चपक दिस वो फट ले खुलगे। तीर वाला बटन ल चपके रहिस ते पाय के पूरा नइ खुलिस। टूरा के दाई ह झट ले बटन ल चपक के बंद करिस अउ टूरा ले जोर से एक थपरा मारिस। टूरा ह रोये बर धर लिस। वोकर दाई कहिस- ‘झन छू कहिथंव त नइ मानस रोगहा चुप बइठ नइते दूनों गाल ल अंगाकर रोटी कस पो देहूं।’
— वोतके जुआर एक झन नोनी ह अपन गियां संग आके खाली सीठ म धम्म ले बइठ गे। वो ह अपन संगवारी ल कहिस- ‘चल गोई ये मेर बइठे बर सीठ तो मिलिस खड़े-खड़े गोड़ पिराय ल धर लिस। भगवान भला करय रोगहा बम रखइया के।’ संगवारी हांस के पूछिस- ‘कइसे तेहां असीस देवत हस धन गारी?’ नोनी कहिस- ‘दूनों देवत हंव, उंकर सेती बइठे ल मिलिस तेकर सेती असीसी अउ बम राख दे हे तेकर सेती गारी देवतहंव।’ वो नोनी के हिम्मत देखे के लइक रहीस अटेची ल उठा के देखिस अउ कहे लगीस- ‘अब्बड़ गरू हे सिरतोन म बम हे तइसे लागथे।’ संगवारी कहिस- ‘कइसे करथस वो बम ह फूट जाही त?’ नोनी- ‘त का होही?’ संगवारी कहिस – ‘अरे बबा काल के मरइया आजेच मर जाबो।’ नोनी- ‘मरना तो हे न?’ संगवारी – ‘हौ।’ नोनी- ‘त का फरक परथे काली के मरइया आजे मर जाबो, एक दिन तो सबला मरनेच हे। कोनो अमरीत पी के तो नइ आय हे जेन सदा दिन जीयत रइही। हमर भाग म बम फूटे ले मरे के बदे होही त वोला कोन टार सकथे।’ वो कहिथे न- ‘राखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त राखही कोन।’
— एक झन कहिस- ‘का बताबे सिरतोन म बहुत बुरा हाल हे। जुन्ना रेलवे पुलिया अउ करमचारी मन के लापरवाही ले वइसने जब नहीं तब जिहां नइ तिहां बम फोरत हे गोली चलावत हे। इंकर मारे तो कहूं आना-जाना घलो मुसकुल होगे हे। हिंसा ले सुख, खुशहाली अउ सांति लाए के उदिम अउ हिंसा ले ये नई लाय जा सकय। येला लाय बर दया-मया, भाईचारा अउ अहिंसा के रद्दा ल अपनाए ल परही।’
— कोनो जाके टेसन मास्टर ल बता दिस। रेल म बम हे कहिके सुनिस त वोकरो तरुआ सुखा गे। वो ह एक झिन पोटर ल कहिस- ‘जातो देख के आ लोगन का अटेची अउ बम कहिके आंय-बांय बकत हें।’ पोटर डब्बा मेर गिस दू-चार झन सो पोटर ह टेसन मास्टर तीर जा के कहिस- ‘कुछु समझ म नइ आवत ये दूनों डब्बा म अटेची हे फेर वोमा का हे ओला खोले म पता चलही।’ थोकिन देर म झंडी धरे एक झन मनखे आइस उहू डर्राय बानी देखिस अउ सूट ले चल दिस। ए दारी टेसन मास्टर जांच करे बर आइस। उहू ह थोकन ऐती-तेती देख के रेंग दिस। आफिस म जाके तिल्दा, भाटापारा, रइपुर, अउ बिलासपुर टेसन ल बम के खभर फोन ले दिस अउ आके 5-6 नम्बर के बोगी ल खाली करे बर कहिस। बांचे मन समान ल धर के उतरगे। आरपीएफ अउ जीआरपी वाले मन आइन अउ एक-एक करके बारों बोगी के जांच करिन। दू झन आइन अउ वो अटेची मन ल बांस म फंसा के डब्बा ले उतार के पलेटफारम म पटक के देखिन त पता चलिस वोमा तो सिरिफ कपड़ा लत्ता भराय हे। बम निरोधक दस्ता के अब तक कांही पता नइ रहिस।
— ये तरह सवा-डेढ़ घंटा सिरागे। फोकटे-फोकट एक ले इक्काइस करइया मन के सेती तो कभू-कभू दंगा-फसाद घलो हो जाथे। अइसना म हमला धीरज अउ सांति ले काम लेना चाही। कोनो कहूं कहि दिस के- कउंआ कान ल लेगे त वोकर पाछू नई भागना चाही। बम के नाव ले के तो कइझन के दम निकलत-निकल बांचगे। कइसनो करके ये नाटक ह सिराइस, सब झन ल हाय जी लागिस। टेसन मास्टर ह कहिस जेन ल जाना हे टरेन म बइठव, टरेन छुटइया हे। कइयो झन पलेटफारम म रहिगे, डर के मारे चढ़बे नइ करिन अउ कइयो झन देरी होय के सेती काम नइ हो पाही कहिके उहें ले लहुटे बर पलेटफारम म रहिगे। डराइभर ह हारन दिस अउ बारा बज के आठ मिनट म टरेन ह धीरे-धीरे रेंगे लगीस…
नरेन्द्र वर्मा
सुभाषवार्ड भाटापारा


चित्रगुप्त के इस्तीफा

यमराज – मिरतू के देवता
चित्रगुप्त – यमराज के मुकरदम, जीव मन के पाप-पुण्य के हिसाब रखईया
यमदूत – यमराज के दूत
एक आत्मा – टेस्ट-ट्यूब बेबी के आत्मा
दूसरा आत्मा – कोख किराया लेके पैदा होये मनखे के आत्मा
तीसर आत्मा – क्लोन के आत्मा
ब्रम्हा, विष्नु, महेष -  त्रिदेव
( यमलोक म यमराज के राज-दरबार म यमराज अउ चित्रगुप्त गोठियात हें )

यमराज – इस्तीफा ?
चित्रगुप्त - हाँ महराज मोर इस्तीफा।
यमराज - इस्तीफा ! ये इस्तीफा काये चित्रगुप्त ?
चित्रगुप्त - इस्तीफा, इस्तीफा होथे महराज।
यमराज - फेर येला तो मैं पहली घंव सुनत हँव चित्रगुप्त। येला तैं कहाँ ले पागेच अउ येकर का अरथ होथे, तेनो ल तो बता ?
चित्रगुप्त – महराज जब कोनो ल ककरो इहाँ नौकरी नइ करना रहय त अइसने लिख के दे जाथे, तेन ल इस्तीफा कहिथे, ये हर मिरतू लोक के शब्द ये महराज।
यमराज - हमर इहाँ ये इस्तीफा-फिस्तीफा ह नइ चलय चित्रगुप्त तोला बुता तो करेच ल परही नइते मैं तोर बुता बना देहूँ।
चित्रगुप्त - मैं ह आप मन संग अतेक दिन ले अड़बड़ मिहनत अउ ईमानदारी ले बुता करत आत हँव फेर अब मोला अइसे लागत हे, के मोर हिसाब-किताब ल ये मनखे मन गलत करवाके मोर फजीहत करवा दिही।
यमराज – का होगे तेमा ?
चित्रगुप्त – काय नइ होये महराज ?
यमराज – काय नइ होये ये ?
चित्रगुप्त- बहुत कुछ होगे महराज।
यमराज - देख चित्रगुप्त तैं ह तो जानत हस तोर बिन मोर काम नइ चलय। मोला अइसे लागत हे सरलग अतेक दिन ले अतेक जादा बुता करत-करत बुता के बोझा म चपका के तोर चेत-बुध हरागे, बइहा-बरन कस तोर हाल होगे हे। तिही पाय के आँय-बाँय गोठियावत हस। थोकन अपन दिमाग ल ठंडा रख अउ सोझ-सोझ गोठिया नइते कहूँ मोर सुर बदल जाही त एकाद गदा ठठा देहूँ।
चित्रगुप्त – ठठाबे ते ठठा ले महराज फेर मैं अब ये बुता ले हक खा गे हँव।
यमराज - ये चित्रगुप्त तैं ह एक ठन नवा चरित्तर ल नइ देखत अस का ?
चित्रगुप्त – मैं ह कई ठन चरित्तर ल देखत हँव तेकरे सेती तो इस्तीफा देत हौं। फेर आप-मन कोन चरित्तर के गोठ करत हव ?
यमराज - ये जमदूत मन कइसे बाबू-पिला के आत्मा ल जादा धर के लानत हें अउ माइलोगिन मन के आत्मा ल कमती लानत हें ?
चित्रगुप्त – आजकल पिरथी म माइलोगिन मन के संख्या कमती होवत जात हे तेकर सेती कमती लानत हे।
यमराज – कमती काबर होवत हें ?
चित्रगुप्त – वो का हे महराज मनखे मन अइसना मषीन बना डारे हें के पेटे भीतरी ले जान डारथें लइका ह नोनी ये धन बाबू। नोनी होइस तहान ले अब्बड़ झन मन वोला पेटे भीतरी मरवा देथें।
यमराज - ओ हो ! ये तो बिलकुल गलत होत हे। अइसना करइया ल तो कड़ा से कड़ा सजा मिलना चाही। हमर कानून म येकर बर का सजा हे ?
चित्रगुप्त – अइसना कानून तो नइये महराज पहली अइसना नइ होवत रहिस, होय घलो हे त वो केस ल भगवान खुदे देखे हे। परीक्षित ल मारे बर अष्वत्थामा ह कोषिष करे रहिस तेकर सजा भगवान श्रीकृष्ण जी ह खुदे दे रहिस। वोकर माथा के सार चीज बुद्धिरूपी मणि ल सइघो बाहिर निकाल ले रहिस अउ तउने बेरा ले वोकर तन म कुछ नइ रहिगे, जीव भर के छोड़े।
यमराज - येकर बर नवा कानून बनवाये ल परही।
चित्रगुप्त - सही बात ये महराज।
यमराज – अवइया आत्मा मन म एक ठन बात अउ देखे म आवत हावय के आजकल छोकरी मन के आत्मा जादा आवत हे, डोकरी-ढाकरी मन के आत्मा ह कमती आवत हे अइसना काबर होवत हे चित्रगुप्त ?
चित्रगुप्त – दाईज महराज दाईज।
यमराज - दाईज के मरई ले का लेना-देना हे ?
चित्रगुप्त - दाईज के तो लेना-देना हे महराज। कमती दाइज लाथे त ससुरार के मन बहू ल कइसनो करके मरे बर मजबूर कर देथें। अपन होके नइ मरय त बरपेली माटी तेल डार के जला के, नइते फाँसी म अरो के मार देथें महराज। तइहा घलो तो कहयँ भागमानी के पत्तो मरथे, तेने ल करत हें।
यमराज - पहली तो अइसना नइ होवत रहिस चित्रगुप्त, ये मनखे मन का-का करे बर धर ले हें ?
चित्रगुप्त - कलजुग नोहय महराज, मनखे जेन कर दय कमतीच हे।
यमराज – सिरतोन ए।
चित्रगुप्त - महराज एक ठन अउ गड़बड़ी होवत हे।
यमराज – तैं आज गड़बड़ी के छोड़ अउ काँही नइ सुना सकस चित्रगुप्त ?
चित्रगुप्त – अइसे हे न महराज गड़बड़ी ल तो बतायेच ल परही। नइते पाछू आपे मन काबर नइ बताये कहिके बद्दी देहू।
यमराज - ले भई बता डार।
चित्रगुप्त – यमदूत मन जेन आत्मा मन ल धरके लानत हे उँकर मिलान करे म कई झन तो उँकर लेखा-जोखा ल सुनाबे त सोझ कहि देथे ये सब गलत-सलत हे न तो हमर ये नाव रहिस जेन कहत हव न वइसना करम तो हम कभू करेन। नाव पता बताबे त कहिथें हम तो उहँा कभू रहिबे नइ करेंन जेन बतात हव सब गलत हे। यमलोक म तको भारी भ्रष्टाचार फैलगे हे तइसे लागथे कहिथें महराज। पता करे बर यमदूत मन मिरतू लोक जाथे त उँकर कहना सिरतोन म सही निकलत हे उहां उँकरे मुंहरन के वोकरेच हिस्सा के मनखे मिलत हें। यमदूत मन चक्कर म पर जाथे महराज येला धरवँ ते वोला धरवँ येला लेगवँ ते वोला कहिके। ये का होवत हे कँाही समझ म नइ आवत हे ? पहली तो कभू-कभू धोखा हो जात रहिस अब तो अति होगे हे।
यमराज – ये का कहत हस चित्रगुप्त ?
चित्रगुप्त – सिरतोन काहत हव महराज।
(बाहिर हल्ला-गुल्ला, नारा बाजी के आवाज होथे)
यमराज – ये बाहिर म कोन मन चिचियावत हें ?
चित्रगुप्त – बाहिर म आत्मा मन नारेबाजी करत हें महराज।
यमराज - वोमन ल बाहिर म कोन छोड़ के आये हे ?
चित्रगुप्त – वोमन ल कोनो नइ छोड़े ये महराज।
यमराज – कोनो नइ छोड़े ए ?
चित्रगुप्त - हाँ महराज।
यमराज - वोमन ल कोन ले के आये हे ?
चित्रगुप्त - वोमन ल कोनो नइ लाये हे, महराज।
यमराज - (चमक के) का कहे वोमन ल कोनो नइ लाये हे, त फेर वोमन इहाँ कइसे आगे ? का तमाषा ए रे।
चित्रगुप्त – वोमन अपने-अपन आगे हें महराज।
यमराज - बिन यमदूत के लाने ये मन अपने-अपन कइसे आ सकथें ?
चित्रगुप्त - कइसे आ सकथें नहीं महराज आ गे हें।
(बाहिर म फेर हल्ला-गुल्ला होथे)
यमराज – वोमन ला भीतरी म लानव अउ उँकर पुण्य-पाप के लेखा-जोखा पढ़के सुनाव।
चित्रगुप्त - इही ह तो हलाकानी के कारण ये महराज येकरे सेती तो मैं ह इस्तीफा देहूँ काहत हँव।
यमराज - फेर तोर इस्तीफा के गोठ आगे न, छोड़ येला अउ बता इंकर लेखा-जोखा ल काबर नइ सुना सकस ?
चित्रगुप्त - हमर सो इंकर लेखा-जोखा ह नइये महराज।
यमराज - अइसे कइसे हो सकत हे के कोनो परानी के पाप-पुण्य के लेखा-जोखा हमर सो नइ रहय ? ये मन पैदा कइसे होगे ? अतका बाढ़ के मर घलो गय अउ अपने-अपन इहाँ तक आ गे। तैं अपन बुता म ढेरियास ल धर ले हस तइसे लागथे चित्रगुप्त अइसना कइसे होगे ?
चित्रगुप्त – होगे भई होगे। कइसे होगे तेन ल मैं हर का जानव। मैं ह तो अतके ल जानत हँव ब्रम्हाजी के डिपार्टमेंट ले इंकर काँहीं विवरण नइ आये हे।
यमराज – ब्रम्हाजी ल चिट्ठी लिखके पूछ बिन बताय ये काय करे ल धर ले हें ? एक तो पहली ले आनी-बानी के, रंग-रंग के जीव-जन्तु बनाके सबके हिसाब-किताब रखे बर कहिके हमन ला वइसनेच्च हक्क खवा डारे हे, तेमा ये उपराहा ले अब नवा जीव मन के जानकारी घलो नइ भेजत हें।
(चित्रगुप्त ह चिट्ठी लिख के पठोथे थोकिन देरी वोकर जुवाब आ जाथे)
चित्रगुप्त – महराज ये दे चिट्टी के जुवाब आगे। उँकर कहना हे जेतका जीव बनाय जाथे एक-एक के हिसाब भेज दे गे हे हमन मिलान कर डारे हन।
यमराज - त ये बुजा मन कहाँ ले आ गे चित्रगुप्त ?
चित्रगुप्त - कभू-कभू भगवान बिस्नू अउ भोले बबा तको तो जीव रच देथें फेर वोकर जानकारी ल तो खच्चित पठो देथें। फेर ये बुजेरी मन बिना लेखा-जोखा के इहाँ कइसे आ गे समझे म नइ आवत हे ?
यमराज - जल्दी पता लगवा तो येमन कोन ये ? कहाँ ले आये हें ? कइसे आयें हें तेन ला ?
चित्रगुप्त – का पता लगवाना येला तो मही हर पता लगाये बर जात हँव। पायलागी महराज।
यमराज - जल्दी जाके पता कर भई।
(चित्रगुप्त के जाना। द्वारपाल ह यमलोक के छोटे कपाट ल खोलथे वोमा ले चित्रगुप्त ह बाहिर निकलथे। बाहिर म आत्मा मन धरना दे हें अउ नाराबाजी करत हें। चित्रगुप्त ल देख के चुप हो जाथें।)
आत्मामन – कपाट ल हेरवा अउ हमूमन ल जल्दी भीतरी म लेग। बाहिर म बइठे-बइठे हमन असकटा गेंन।
चित्रगुप्त – तुँहरेच चक्कर म तो परे हँव ददा हो। तुमन तो मोर दिमाग के बारा बजा डारे हव। कहाँ-कहाँ ले आगे हावव ? कोन तुमन ला इहाँ लाये हे ते ?
एक आत्मा – हमन मिरतू लोक ले आये हन महराज। अउ हमन ल कोनो नइ लाये हे हमन अपने-अपन आये हन।
चित्रगुप्त - अपने-अपन आयके शक्ति कइसे आगे ? अकाल मिरतू ये का ?
दूसर आत्मा - हौ महराज।
चित्रगुप्त – तुमन मे बतावत हमर यमदूत के बिन लाने काबर आगेव ?
तीसर आत्मा – हमन तो उहाँ मरगे रहेन फेर देखेन आपमन के यमदूत मन हमन ला नइ लेगत ये त का करतेन हमन जुरिया के उँकरे पाछू-पाछू आगेन। अब हमन ला भीतरी म नइ खुसरन देत रहिन त का करतेन। नारा लगा के जगावत रहेन।
चित्रगुप्त - कलेचुप भीतरी चलव अउ अपन नाव पता अउ जनम स्थान ल एक-एक करेक बताहव। द्वारपाल मन मोला तुँहर बारे म बताये रहिन फेर तुँहर काँहीं विवरण नइये ते पायके मे ह बने ढंग ले तुँहर मन के जाँच करके देख हँव। एक-एक करके ये मेर आहू अउ ढलंगत जाहू। बाँचे मन हल्ला झन करहू।
(सब झन ला एक-एक करके बताए जघा म सुताके अपन ह धियान लगाके आगू म बइठे राहय बीच-बीच म छू-टमड़ के देखत जाथे। फेर मुड़ी ह सब झन के दरी नहीच म हालत जाथे। आखरी म उठके बइठगे अउ अपने-अपन बड़बड़ाय बर धर लीस।)
चित्रगुप्त - (अपने-अपन) – अतेक झन ल जाँच कर डारेंव फेर ककरो काँहीं लेखा-जोखा नइ मिलीस। अउ ते अउ ब्रम्हाजी के टेªडमार्क घलो इंकर माथा म नइये। अउ न कोनो देवी-देवता के घलो टेªडमार्क दिखत हे। येकर मतलब हे के इनला न तो ब्रम्हाजी बनाय हे अउ न कोनो आन देवी-देवता मन बनाये हें। त येमन ला बनाय तो बनाये कोन होही ? इंकरे सो पूछ लँव कहूँ कोनो जानत होही ते।
चित्रगुप्त - तुमन के जाँच करके देख डारेंव फेर तुमन कहाँ के मेड इन अव तेन ल नइ जान पायेंव। तुमन कहाँ कइसे पैदा होय हव काँहीं पता हे त बतावव ?
एक आत्मा – इंकर ल तो मैं हर नइ जानव फेर मोर दाई ह बताये रहिस मैं हर परयोगषाला म पैदा होय रहेंव टेस्ट ट्यूब बेबी अव। मोर जनम ह भगवान के संजोग ले नहीं बिज्ञानिक मनके दिमाग ले होये रहिस।
दूसर आत्मा - ‘‘हमला तो हमर दाई-ददा मन कोख किराया लेके डाॅक्टर मनके दिमाग अउ मिहनत ले पैदा करवाय रहिस।’’
तीसर आत्मा – मैं हर तो अपन दाई के शरीर के कोषिका ले पैदा करे गे हँव। मैं हर अकेल्ला नहीं मोरेच कस दस झन बनाये गे हे, हमन सब्बो झन एक्केच बरन दिखथन हमन ला क्लोन कहिथें।
(चित्रगुप्त मुड़धर के भीतरी खुसरथे अउ राज-दरबार म जाके यमराज ल जाके बताथे)
चित्रगुप्त - ये मनखे मन भारी लाहो ले बर धर ले हें। येमन जम्मो नियम ल उलट-पलट करत हें महराज।
यमराज – का नियम ल उलट-पलट करत हें ?
चित्रगुप्त – ब्रम्हाजी जीव नइ बनाना चाहत हें उहाँ येमन जीव बनावत हें। ब्रम्हाजी ह एक ठन जीव बनाके मिरतू लोक म भेजत हें त ये मनखे मन तो वोकर ले पता नहीं के ठन बनात हें महराज। इही पायके मोर हिसाब-किताब ह मिले ल नइ धरत रहिस अब समझ म बात ह आइस।
यमराज – तइहा मनखे मन जादा गड़बड़ नइ करत रहिन। कोनो-कोनो रिसी-मुनि मन भर कभू-कभू अइसनहा करय उँकर सो अइसना करे के शक्ति रहिस। फेर आज तो मनखे जेन मन म आत हे करत हें।
चित्रगुप्त – सिरतोन कहेव महराज येकरे सेती तो मैं ह इस्तीफा देहूँ काहत हँव।
यमराज – तोर गोठ ल सुन-सुन के मोर दिमाग ह घूमे ल धर ले हे अउ तैं ह घूम-फिरके भइगे इस्तीफा के रटन धरे हस। ये मनखे मनला जेन करना चाही तेन ला करय नहीं अउ येती-तेती के जम्मो लंदर-फंदर म परे रहिथें।
चित्रगुप्त – बने काहत हव महराज।
यमराज – फेर मनखे के दिमाग ल माने बर परही चित्रगुप्त। काय-काय नइ गुनत रहय, काय-काय नइ करत रहय। वो तो बने होथे के बीच-बीच म परलय मचा के दुनिया के शुरूआत फेर से करे के रिवाज बनगे हे नइते येमन तो हमर संगे संग ब्रम्हाजी ल घलो सोज्झे रेंगा देतिन।
चित्रगुप्त – येकर काहीं उपाय खोजे बर परही महराज।
यमराज – उपाय तो खोजेच बर परही फेर ये हमर हाथ-बात थोरे ए। ब्रम्हाजी सो खबर पठो तो बड़ भारी समस्या आगे हे तुरतेताही सबो देवी-देवता के मिटिंग रखना हे।
(ब्रम्हा, बिस्नू, महादेव अउ जम्मो देवी-देवता मन जुरियाये हें। यमराज सबो झन ला अपन अभी के अउ अवइया नवा समस्या ल उँकर आगू रख डारे हें। उँकर बीच सोच-विचार चलत हे का फैसला ले जाही ये तो अवइया समय ह बताही।)

नरेन्द्र वर्मा
सुभाष वार्ड, भाटापारा
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